कनपुरिया स्वाद:शहर के जायके

कनपुरिया चटखारा … आह क्या कहने


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रात के डेढ़ बजे हैं। हम शहर के उस हिस्से में हैं जहां दिन सा माहौल है। भीड़ इतनी कि, बड़े आराम से तो पैदल भी न निकल पाएं। शमां हर तरफ रोशन है। खुशबू भी फिजां में अपनी बादशाहत कायम किए हुए है। कहीं सेवई बन रही है तो कहीं कुलचे। कहीं चाय की चुस्कियों संग खुदा की इबादत पर चर्चा चल रही है तो कहीं हो रही सहरी की तैयारी। हजारों लोग सड़क पर हैं मगर शोर बिल्कुल नहीं। जूते से लेकर कपड़ों की दुकानें सड़क पर यूं लगीं हैं मानो खास बाजार में आए हैं।दो बजे : बेकनगंज में रूपम टाकीज के सामने हम पहुंचे हैं। कुछ मौलाना कुर्सियों पर विराजमान हैं। बगल में लस्सियां बन रहीं हैं और साथ में बन, वो भी मक्खन के साथ। महज दो रुपए में। पूछा-जनाब इतना सस्ता कहां से लाए? दुकानदार ने कहा-जहां महंगा है वे बेचते हैं। हम तो खुद बनाते हैं। कमाल का न लगे तो बताइए। सहसा हमारी नजर सामने गई तो देखा चूड़ियों का बाजार सजा था। कई महिलाएं वहां खड़ी थीं। एक से एक चूड़ियां। ज्यादातर फिरोजाबादी। सवा दो बजे : हम अजमेरी होटल की ओर मुड़े हैं। चौराहे पर एक सेवई की बड़ी दुकान है। लिखा है बनारसी सेवई। देखने में बड़ी बारीक। पूछ बैठे-क्या वाकई बनारसी है। दुकानदार मो. रिजवान कहते हैं-अब कहां जनाब। हकीकत ये है कि अब बनारस का नाम चलता है। ये सेवई तो हम कानपुर में ही बना लेते हैं।

ढाई बजे : हम चमनगंज चौराहे पर खड़े हैं। यहां जूते बड़े सस्ते हैं। डेढ़ सौ रुपए में स्पोर्ट्स शू मिल रहे हैं। ढेर सारे युवक और परिवार यहां हैं। कोई बच्चे के लिए खरीद रहा है तो कोई पिता के लिए। महिलाएं अपने लिए जूती ले रही हैं। बगल में कपड़े की दुकानों पर कुर्ते पाजामा की भरमार। चकाचक सफेद। हुमायूं बाग निवासी हैदर बेग और चमनगंज के शादाब भी खरीद रहे हैं। बगल में स्टेट बैंक के कैशियर खालिद भाई भी हैं। कहते हैं-ये बाजार प्यार का है, महंगा माल भी सस्ते में।

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कानपुर। रमजान पर शहर के मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में रात का नजारा देखते ही बनता है। गुलजार बाजार रात को जवां बनाए रखते हैं। यहां की खानपान की दुकानों पर लगने वाली भीड़ दिन की दुकानदारी को भी मात देती दिखती है। जगह-जगह छोटी महफिलों में अदब और जुबां का मिश्रण दिल जीत लेता है।

 

यह है जो की हर साल रमजान में अपनी दुकान अजमेरी होटल चौराहे चमन गंज के पास लगाते हैं और कानपुर के कोने कोने से लोग इनकी नहारी कोल्चे का स्वाद चखने यहाँ आते हैं,क्या आपने खाई है जुम्मन मियां की कोल्चे नहारी ?

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6 responses to “कनपुरिया स्वाद:शहर के जायके

  1. वाह मज़ा आ गया . आज तो कनपुरिया स्वाद का सुबह सुबह आनंद लिया पढ़कर ही सही. एकदम मस्त पोस्ट . कानपुर से दूर बैठकर मुह में पानी आया …..ashish27 दिसंबर 2016 को 8:19 pm

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  2. कानपुर तो स्वादों की नगरी है , एक समय वो भी था जब नाना जी ने अंग्रेजों को अपने अंदाज मे स्वाद चखाये थे । आप सब केवल मुँह में बस पानी मत लाइये । हम आपको आमंत्रित भी कर रहे हैं ।

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  3. Arvind Mishra1 जनवरी 2016 को 9:11 am
    अरे वाह लार टपक आयी ..हो जाय बनारस और कानपुर का मुकाबला ! मजेदार चटखारी और चटपटी पोस्ट ….और जायकेदार जानकारी दार भी -आभार

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  4. रविकान्त 7 मई 2016 को 5:26 am
    वाक़ई,
    कानपुर मेरी ससुराल है और पिछले दस सालों में वहाँ अकसर ही आना-जाना और दबाके खाना-पीना हुआ है। मैं मिठाईखोर हूँ,कुछ भी मीठा खा लेता हूँ, लेकिन कानपुर की मिठाईयाँ शायद ही अपना सानी रखती हों। मैंने एक जगह पर अच्छा सामिष भी खाया है, मटन/चिकेन बिरयानी, निहायत लज़ीज़। लोग बड़े प्यार से खाते-पिलाते और खने पीने पर घंटों बातें करते पाए जाते हैं। शुक्रिया रविकान्त

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